अपने मखमली लहजे से भारत की गंगा जमुनी तहज़ीब की हिफाजत करने वाले कमाल ख़ान जैसों की मौत नहीं होती, उनकी कमाल की मोहब्बत की हयात तमाम दलीलें देती रहीं। आज लखनऊ की सुबह और बनारस की शाम उदास थी
लेकिन इस उदासी में भी कमाल की कोशिशें परवान चढ़ने के सुबूत दे रही थी। कमाल ख़ान की ज़िन्दा तस्वीर के सामने वाराणसी के गंगा घाट की आरती कमाल की ख्वाहिशों को ज़िन्दा रखें थीं। बाकमाल सहाफी को खिराजे अकीदत पेश करने के लिए लखनऊ स्थित मलका जहां की कर्बला में इकट्ठा लोगों को मौलाना कल्बे जव्वाद जब मजलिस को खिताब कर रहे थे
तब सोगवारों के आंखों से निकलते आंसुओं में ये पहचानने का हुनर किसी के पास नहीं था कि कौन सा आंसू हिन्दू और और कौन सा मुसलमान। पत्रकारिता के इस कबीर को सुपुर्दे ख़ाक करने वाले हाथ उनके मजहब की शिनाख्त नहीं कर पा रहे थे। कमाल ख़ान के बटलर पैलेस स्थित आवास से लेकर ऐशबाग मलका जहां की कर्बला में हरदिल अज़ीज़ कमाल ख़ान को सुपुर्दे खाक करने वालों में तमाम पुरसेदार (शोक संवेदनाएं प्रकट करने वाले)थे।
सुबह तड़के मौत की ख़बर सुनकर कोई सुबह ही बटलर पंहुचा। कोई दोपहर में रो आया। कोई अपने अज़ीज़ दोस्त के अंतिम सफर में शाम को क़ब्रिस्तान पंहुचा। एक उतरा हुआ चेहरा बटलर पैलेस में सुबह आठ बजे से जनाजे के ईर्द गिर्द दिखाई देता रहा।
अंतिम यात्रा से लेकर सुपुर्दे खाक करने तक ये शख्स एक मिनट भी आंखों से ओझल नहीं हुआ। घर में जनाजे से लेकर कब्रिस्तान में तदफीन (अंतिम क्रिया) तक हर जगह मौजूद रहने वाला ये शख्स बारह घंटे तक भूखा-प्यासा रहा। किसी ने पूछा ये कौन है ! बताया गया कि ये मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार शलभमणि त्रिपाठी हैं। जो न सिर्फ मुख्यमंत्री के नुमाइंदे के तौर पर अपना फर्ज निभा रहे थे बल्कि कमाल भाई के साथ बरसों टीवी पत्रकारिता करने वाले अपने सीनियर साथी से मोहब्बत का हक़ अदा कर रहे थे।
ये सब देखकर लगा कि अपने किसी भी फन के जरिए मोहब्बतें बांटने वाला कोई भी शख्स मरता नहीं, मोहब्बत की संस्कृति में अमर हो जाता है।
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