आज से करीब 1000 साल पहले 12वीं शताब्दी के लगभग काकतीय वंश के राजा प्रताप रुद्र द्वितीय अपने राज्य से बहुत दूर घने जंगल में शिकार खेलने गए और शिकार खेलते खेलते ही अँधेरा हो गया। जब वह बहुत थक गए तो उन्हें उन्होंने सोचा ईसी जंगल में रात बिताई जाए। रात में राजा वही एक पेड़ के नीचे सो गए अचानक आधी रात को उनकी नींद खुली और उन्हें सुनाई पड़ा कि जैसे कोई भगवान श्री राम के नाम का जप कर रहा है।
इस घटना से राजा अत्यंत विस्मित हुए उन्होंने उठकर आसपास देखा और थोड़ी दूर में ढूंढने पर पाया कि वहां पर एक हनुमान जी की मूर्ति ध्यान मुद्रा में बैठी हुई है उस मूर्ति में अवर्णनीय आकर्षण था ध्यान से देखने पर पता चला कि श्री राम नाम का जप उसी मूर्ति की तरफ से आ रहा था।
राजा और भी अधिक आश्चर्यचकित हो गया और सोचने लगा कि कैसे एक मूर्ति भगवान के नाम का जप कर सकती है?
राजा लगातार उसी मूर्ति को देखे जा रहा था थोड़ी देर में उसे ऐसा दिखा जैसे खुद वहां मूर्ति नहीं बल्कि खुद हनुमान जी बैठे हुए हैं और अपने प्रभु श्रीराम का स्मरण कर रहे हैं।
जब राजा को यह एहसास हुआ कि यह मूर्ति नहीं स्वयं हनुमान जी है तब राजा प्रताप रुद्र ने तुरंत उस मूर्ति के आगे दंडवत प्रणाम किया और राजा बहुत देर तक श्रद्धापूर्वक उसी मूर्ति के आगे प्रार्थना की मुद्रा में बैठा रहा और फिर वापस सोने चला गया।
जब राजा को गहरी नींद आई तो उसने स्वप्न देखा और उस स्वप्न में स्वयं हनुमान जी प्रकट हुए और राजा से कहा कि वह यहां पर उनका मंदिर बनाए।
स्वप्न देखकर राजा की नींद खुल गई और वहां से तुरन्त अपने राज्य की ओर वापस चल पड़ा।
अपने राज्य में पहुंचकर राजा ने एक अपने समस्त मंत्रियों सलाहकारों और विद्वानों को बुलाकर एक विशेष आपातकालीन सभा बुलाई और उसमें अपने सपने के बारे में सबको बताया,
राजा द्वारा बताए हुए स्वप्न से आश्चर्यचकित सभी लोगों ने एक सुर में कहा – “हे राजेंद्र निश्चित रूप से यह आपके लिए बहुत ही शुभ स्वप्न है और इससे आपका कीर्तिवर्धन होगा और आपका राज्य निरंतर उन्नति करेगा आपको तुरंत यहां पर एक मंदिर बनाना चाहिए ।”
शुभ मुहूर्त में मंदिर का निर्माण शुरू हुआ ठीक उसी स्थान पर जहां राजा ने श्री हनुमान जी की मूर्ति को भगवान श्री राम का जप करते देखा था और राजा ने एक बहुत ही सुंदर मंदिर का निर्माण कर दिया।
श्रीराम का ध्यान करते हनुमान जी के इस मंदिर को नाम दिया गया “ध्यानञ्जनेय स्वामी” मन्दिर।
धीरे-धीरे इस मंदिर की ख्याति चारों तरफ फैल गई और दूर दूर के राज्यों से लोग इस के दर्शन करने आने लगे।
इस दैवीय घटना के लगभग 500 वर्ष बाद अबुल मुजफ्फर मोहीउद्दीन मोहम्मद औरंगजेब जिसे औरंगजेब के नाम से ही सर्वस्व ख्याति प्राप्त थी मुगल सल्तनत का बादशाह बना।
- इस दुष्ट, लालची और क्रूर औरंगजेब का एक और नाम था आलमगीर जिसका मतलब होता है विश्व विजेता। इस आलमगीर औरंगजेब के सिर्फ दो ही मकसद थे।
✔1. सबसे पहले पूरे भारतीय महाद्वीप पर अपना मुगल सामराज्य फैलाना ।
✔2. इस्लाम की स्थापना करना और हिंदू मंदिरों को तोड़ना इस दुनिया से हिंदू धर्म का समापन और सभी जगह इस्लाम का विस्तार वाद।
🚩औरँगज़ेब का दुर्भाग्य था कि ये वही “ध्यानञ्जनेय स्वामी” का मंदिर था
मंदिर के बाहर आलमगीर के सेनापति ने कहा कि मंदिर के भीतर से सभी पुजारी, कर्मचारी और भक्त बाहर निकल आये वरना सबको मौत की नींद सुला दिया जायेगा।
मृत्यु के भय से थर थर कांपते मंदिर के अंदर मौजूद सभी पुजारी एवं अन्य लोग भगवान श्रीराम के ध्यान में लीन श्री हनुमान जी को प्रणाम कर इस विपदा को रोकने की प्रार्थना करते हुए बाहर निकल आये।
अपने इष्टदेव का मंदिर टूटते देखने का साहस किसी में नहीं था इसलिए सबने इस दुर्दांत दृश्य के प्रति अपनी आंखें बंद कर लीं और मन ही मन हनुमान जी का स्मरण करने लगे।
मुगल सेनापति ने उन्हें एक तरफ खड़े हो जाने को कहा और अपनी सेना को हुक्म दिया की मंदिर तोड़ दो। सैनिक मंदिर की तरफ बढ़ने लगे।
पुजारी जी बोले-
ये श्रीराम के ध्यान में लीन श्री हनुमान जी का मंदिर है। हनुमान जी सभी देवताओं में सबसे बलशाली है, उन्होंने अकेले ही रावण की पूरी लंका को जला कर राख कर दी थी। कृपया उनका ध्यान भंग न करें और मंदिर न तोड़िये अन्यथा वो शांत नहीं बैठेंगे। मैं आपके ही भले के लिए कह रहा हूँ, मेरी बात मानिये और ये काम मत कीजिये, हनुमान जी बहुत दयालु हैं आपको माफ़ कर देंगे।
क्रूर सेनापति इससे अधिक नहीं सुन सकता था। उसे तो इस्लाम का झंडा फहराने की जल्दी थी।
बोला- ऐ ब्राह्मण … अपना मुंह बंद करो और यहां से दूर हट जाओ वरना मैं पहले तुम्हे मारूँगा और फिर इस मंदिर को तोडूंगा।
देखते हैं कैसे तुम्हारे ताकतवर हनुमान हमारे हाथों से इस मंदिर को टूटने से बचाते हैं? जिन्होंने पहले भी इससे कहिं ज्यादा बड़े मंदिर तोड़े हैं।
सेनापति अपनी सेना की तरफ मुड़ा और उसे मंदिर तोड़ने का आदेश दिया।
अगले कुछ क्षणों में क्या होने वाला है..??
इस बात से अंजान मुगल सैनिक मंदिर तोड़ने के हथियार हथौड़े, सब्बल कुदाल आदि लेकर एक बहुत बड़ी बेवकूफी करने के लिए मंदिर की तरफ बढ़ने लगे।
फिर.
पहले सैनिक ने जैसे ही अपने हाथों में सब्बल लेकर मंदिर की दीवार पर प्रहार करने के लिए हाथ उठाया .
वो मूर्तिवत खड़ा रह गया जैसे बर्फ में जम गया हो या पत्थर का हो गया हो। वो न अपने हाथ हिला पा रहा था और न ही औजार। भीषण भय से भरी नजरों से वो मंदिर की दीवार की तरफ देखे जा रहा था।
कुछ ऐसी ही स्थिति एक एक कर उन सभी सैनिकों की होती गयी जो मंदिर तोड़ने के लिए औजार लेकर हमला करने बढ़े थे।
सब के सब मूर्ति की तरह खड़े रह गए थे।
” अगर मंदिर तोडना चाहते हो राजन, तो कर मन घाट”
(यानि हे राजा अगर मंदिर तोडना चाहते हो तो पहले दिल मजबूत करो)
डर और हैरानी भरा हुआ औरंगज़ेब इतना सुनते ही बेहोश हो गया।
इसके बाद क्या हुआ उसे पता भी न चला।
मंदिर के भीतर से आते इस घनघोर गर्जन और आवाज़ को वहां खड़े पुजारी और भक्तगण समझ गए की ये उनके इष्ट देव श्री हनुमानजी की ही आवाज़ है
उन सभी ने वहीं से बजरँगबली को दण्डवत प्रणाम किया और उनकी स्तुति की।
उधर बेहोश हुए औरंगज़ेब को सम्हालने उसके सैनिक दौड़े और उसे मंदिर से निकाल कर वापस किले में ले गए।
🛑हनुमान जी के शब्दों से ही उस मंदिर का नया नाम पड़ा जो आज तक उसी नाम से जाना जाता है–
” 🚩#करमनघाटहनुमान_मंदिर”
इस घटना के बाद लोगो में इस मंदिर के प्रति अगाध श्रद्धा हुई और इस मंदिर से जुड़े अनेकों चमत्कारिक अनुभव लोगों को हुए।
सन्तानहीन स्त्रियों को यहां आने से निश्चित ही सन्तान प्राप्त होती है और अनेक गम्भीर लाइलाज बीमारियों के मरीज यहाँ हनुमान जी की कृपा से स्वस्थ हो चुके हैं।
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